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पीएम मोदी और प्रेसिडेंट ट्रंप के बीच हुई बातचीत में ट्रेड से लेकर टेक्नोलॉजी तक कई समझौते हुए. यह बैठक दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण रही. पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात गुरुवार शाम (भारतीय समयानुसार शुक्रवार सुबह 3 बजे) व्हाइट हाउस में हुई. इस बैठक में भारत-अमेरिका के बीच व्यापार, रक्षा सहयोग, आतंकवाद विरोधी रणनीति और ऊर्जा साझेदारी जैसे कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई. दोनों देशों ने अगले पांच सालों में आपसी व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा. इस दौरान रणनीतिक साझेदारी को भी और मजबूत करने पर प्रतिबद्धता जताई गई.
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र (इंडो-पैसिफिक) में एक प्रमुख रणनीतिक सहयोगी बताया. उन्होंने क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) साझेदारी को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई, ताकि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित हो सके.
- अमेरिका ने भारत को और ज्यादा रक्षा तकनीक और सैन्य उपकरण देने पर सहमति जताई. ट्रंप ने कहा कि भारत को अत्याधुनिक हथियार, लड़ाकू विमान और सैन्य प्रणालियां मुहैया कराई जाएंगी. दोनों देशों ने रक्षा क्षेत्र में जॉइंट प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को भी बढ़ाने का फैसला किया.
- अमेरिका अब भारत को कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति बढ़ाएगा. दोनों देशों ने रिन्यूएबल एनर्जी जैसी परियोजनाओं पर भी मिलकर काम करने की योजना बनाई है. इससे भारत को अपने ऊर्जा संसाधनों को और मजबूत करने में मदद मिलेगी.
- दोनों देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का फैसला लिया. इसके तहत एडवांस AI सिस्टम विकसित किए जाएंगे, जो हेल्थ, एजुकेशन, डिफेंस और अन्य क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं. इस साझेदारी से इंडियन स्टार्टअप और टेक कंपनियों को भी फायदा होगा.
- अमेरिका की भारत के साथ व्यापारिक असंतुलन वाली शिकायत दूर की जाएगी. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ व्यापारिक घाटे को कम करने के लिए नए समझौते करेगा.
- दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर निर्माण और क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में जॉइंट रिसर्ज और डेवलपमेंट पर सहमति जताई. भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका तकनीकी सहायता प्रदान करेगा.
- भारत और अमेरिका मिलकर छोटे न्यूक्लियर मॉड्यूलर रिएक्टर विकसित करेंगे. इससे स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और दोनों देशों की ऊर्जा जरूरतें भी पूरी होंगी.