
बिहार में कई मुद्दे रहे, जिनका समय रहते सीएम नीतीश कुमार ने काट निकाला और जनता को विकल्प दिए. इन्हीं का नतीजा रहा कि NDA ने ‘प्रचंड’ बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखी.
अमेरिकी निर्देशक फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की पुस्तक ‘द गॉडफादर’ की यह पंक्ति कि ‘अपने दोस्तों को करीब रखें और अपने दुश्मनों को और भी करीब रखें’, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पूरी तरह सटीक बैठता प्रतीत होता है.
बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए यह पंक्ति मार्गदर्शक साबित हुई, जिसमें उन्होंने विपक्षी के हर चाल पर गौर किया और जब समय आया तो उसे उचित जवाब भी दिया.
सत्तारूढ़ गठबंधन ने विपक्षी महागठबंधन के ‘नकलची’ होने के आरोपों की चिंता किए बगैर सिलसिलेवार तरीके से कई घोषणाएं कर मतदाताओं को लुभाया और चुनावों में इसका लाभ भी उठाया.
क्या रही नीतीश की रणनीति?
राजग की इन घोषणाओं के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव, जिन्हें बाद में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, घोषणा की कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो सरकार 200 यूनिट मुफ्त बिजली देगी.
वहीं, नीतीश ने हर महीने 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की, जिसका मतलब है कि बहुत कम ऊर्जा खपत की जरूरत वाले आबादी के बड़े हिस्से को बिजली बिल के माध्यम से लगभग कुछ भी भुगतान नहीं करना होगा.
कुमार के इस कदम ने जनता की नाराजगी को संभवत: दूर कर दिया होगा जो ‘प्रीपेड मीटर’ लगाये जाने के कारण थी. यह चुनाव में एक मुद्दा बन सकता था लेकिन नीतीश ने लोगों की इस चिंता को दूर कर दिया.
यह एक ऐसा मुद्दा था जो…
इसके अलावा, ‘माई बहिन सम्मान योजना’ के माध्यम से महिलाओं का दिल जीतने के तेजस्वी यादव के प्रयास को उन्होंने ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के माध्यम से विफल कर दिया. इसके तहत एक करोड़ से अधिक महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये हस्तांतरित किए गए.
तेजस्वी के पास ‘हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी’ देने के वादे के अलावा कुछ भी नया नहीं था. यह एक ऐसा मुद्दा था जो राजद के प्रबल समर्थकों को भी सच से परे लग रहा था.
ऐसे और भी कई मुद्दे रहे, जिनका समय रहते नीतीश ने काट निकाला और जनता को विकल्प दिए. इन्हीं का नतीजा रहा कि नीतीश के नेतृत्व में राजग ने ‘प्रचंड’ बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखी.



