याची के बेटे ने 2011 में पारिवारिक न्यायालय से तलाक की मांग की थी लेकिन उसकी याचिका 2014 में खारिज कर दी गई थी। इसके बाद HIGH COURT में अपील लंबित थी। 2022 में याचिका के लंबित रहने के दौरान उसके बेटे की मृत्यु हो गई।
HIGH COURT का अहम फैसला –
पंजाब-हरियाणा HIGH COURT ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि दंपती में से एक की मौत हो जाती है तो उसके लिए कोई और तलाक का केस नहीं लड़ सकता।
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह दो भागीदारों के बीच व्यक्तिगत अनुबंध है। अनुबंध केवल दोनों पक्षों के जीवन काल तक ही रहता है। बेटे की मौत के बाद उसके लिए तलाक का केस लड़ने की मां की मांग को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।
लाक याचिका में पक्ष-
गुरुग्राम निवासी महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए अपने बेटे के स्थान पर तलाक याचिका में पक्ष बनने की मांग की थी। याची के बेटे ने 2011 में पारिवारिक न्यायालय से तलाक की मांग की थी लेकिन उसकी याचिका 2014 में खारिज कर दी गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट में अपील लंबित थी। 2022 में याचिका के लंबित रहने के दौरान उसके बेटे की मृत्यु हो गई। पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि मृतक पति की मां द्वारा दायर आवेदन विचारणीय नहीं है।
आवेदक महिला के वकील ने तर्क दिया कि मृतक-अपीलकर्ता के स्थान पर केस लड़ने का याची को अधिकार है क्योंकि न तो हाईकोर्ट के नियमों और आदेशों में और न ही कानूनी प्रावधानों में कोई रोक है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मृतक-अपीलकर्ता का अपने जीवनसाथी के साथ विवाह के रूप में व्यक्तिगत अनुबंध था। वर्तमान आवेदक जो मृतक की मां है, अनुबंध में पक्षकार नहीं थी और इसलिए वह अपने बेटे और प्रतिवादी के बीच हुए व्यक्तिगत अनुबंध में शामिल नहीं थी। उक्त अनुबंध केवल अनुबंध करने वाले पक्षों के जीवन काल तक ही जीवित रहता है। इसलिए उक्त अनुबंध किसी एक पक्ष की मृत्यु पर समाप्त हो जाता है।
पीठ ने कहा कि पति की मृत्यु पर पारिवारिक न्यायालय द्वारा तलाक को खारिज किए जाने वाले निर्णय को चुनौती देने वाली अपील समाप्त हो जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि मां को अपने मृतक बेटे के स्थान पर पक्षकार बनकर याचिका की आड़ में तलाक मांगने का कोई अधिकार नहीं है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने मां की याचिका खारिज कर दी।
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