एम्स का अध्ययन- हड्डियों को कमजोर बना रहा है दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता वायु प्रदूषण.

इसका खुलासा एम्स के एक अध्ययन से हुआ है। जलवायु परिवर्तन के असर का पता लगाने के लिए एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग ने केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से दिल्ली के सबसे प्रदूषित जोन में एक अध्ययन किया है।

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता वायु प्रदूषण हड्डियों को कमजोर बना रहा है। इसका खुलासा एम्स के एक अध्ययन से हुआ है। जलवायु परिवर्तन के असर का पता लगाने के लिए एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग ने केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से दिल्ली के सबसे प्रदूषित जोन में एक अध्ययन किया।

इस अध्ययन के लिए दिल्ली में पिछले 10 साल से रह रहे 18 से 50 साल के 500 स्वस्थ लोगों को चुना गया। शोध के दौरान इन लोगों में सब-क्लीनिकल ऑटो इम्युनिटी की जांच की गई। जांच में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए। 18 फीसदी लोगों में ऑटो एंटीबॉडी पॉजिटिव पाई गई। जो भविष्य में गठिया होने की आशंका को प्रबल बनाती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से बढ़ता वायु प्रदूषण गठिया रोग को बढ़ा सकता है। यह गंभीर चिंता का विषय है। दिल्ली सहित देश के कई प्रमुख शहर भीषण प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में इन शहरों में रहने वालों की स्थिति भयावह हो सकती है।

एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डॉ. उमा कुमार ने बताया कि अध्ययन में वायु प्रदूषण एक बड़ा चिंता का कारण बनकर सामने आया है। शहरों में इससे कोई अछूता नहीं। हड्डियों के कमजोर होने में धूम्रपान बढ़ा कारण है। लेकिन वायु प्रदूषण के कारण 18 फीसदी लोगों जो कारक मिले वह आगे चलकर गठिया होने की आशंका को बढ़ता है। देश में पश्चिमी देशों के मुकाबले आठ से दस साल पहले गठिया होने की आशंका रहती है। इसके अलावा हमारे देश में धूम्रपान, वायरल इंफेक्शन, कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, शारीरिक गतिविधि की कमी दूसरे कारण रिस्क फैक्टर को बढ़ाते हैं। इसके अलावा कोरोना महामारी के बाद लोगों में ऑटो इम्युन रोग होने की आशंका बढ़ी है।

इलाज के लिए उपलब्ध हैं कई विकल्प
डॉ. उमा ने कहा कि समय के साथ गठिया के इलाज के लिए कई विकल्प उभर के सामने आए हैं। मरीज की जरूरत, उसके रोग के स्तर, रोग के प्रकार सहित दूसरे कारणों को आधार बनाकर उपचार की विधि को चुना जाता है। मौजूदा समय में टारगेट सिंथेटिक सहित दूसरे विकल्प से मरीज को राहत मिलती है।

दवाओं का विकल्प भी बढ़ा
सफदरजंग अस्पताल के स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर में निदेशक प्रोफेसर डॉ. दविंदर सिंह ने बताया गठिया के इलाज के लिए कई नई दवाएं आईं हैं। इन्हें मरीजों की जरूरत के आधार पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इनकी मदद से रोग को बढ़ने से रोकने के साथ सुधार भी देखा गया है। डॉ. सिंह का कहना है कि लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज करवाना चाहिए। समय पर इलाज से रोग होने की आशंका खत्म हो जाती है।
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दिखें यह लक्षण तो हो जाएं सतर्क
जोड़ों में सूजन व दर्द, सुबह के समय 30 मिनट तक जकड़न, कुछ भी करने में दिक्कत, लंग्स, सांस लेने में दिक्कत, पेट में दर्द, बिना कारण लंबे समय तक बुखार, मुंह में छाले, बाल झड़ना, अंगुलियों का रंग बदलना, त्वचा में रेसे होना, आंखों में सूखापन।

गठिया के प्रकार
ऑस्टियोआर्थराइटिस : यह उम्र के साथ जोड़ों के घिसने से होता है
रुमेटोइड आर्थराइटिस : इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही जोड़ों पर प्रहार करती है
गाउट : यह एक प्रकार का गठिया है जो यूरिक एसिड के बढ़ने के कारण होता है
अन्य कारण : जैसे चोट, संक्रमण, या कुछ मेटाबॉलिक रोग।

गठिया होने के कारण
खराब जीवनशैली, खराब आहार, तनाव, आनुवंशिकता, हॉर्मोनल बदलाव, थायरॉइड या मेटाबॉलिक सिंड्रोम

कम हो जाती है योग से गठिया होने की आशंका
एम्स के एनाटॉमी विभाग में प्रोफेसर डॉ. रीमा दादा ने कहा कि गठिया पर योग के प्रभाव की जांच के लिए कई चरणों में अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि गठिया रोग की रोकथाम में योग काफी मददगार है। इसके अलावा लंबे समय तक दवा खाने से होने वाली परेशानी कम होती है।

वसाद, तनाव सहित दूसरे कारकों में भी कमी आती है। मरीज यदि योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करता है तो जोड़ों पर गठिया का नकारात्मक प्रभाव कम होता है। जोड़ों में लचीलापन बढ़ता है। रेंज ऑफ मूवमेंट बढ़ जाता है। दर्द कम हो जाता है।

इसके अलावा गठिया के कारण दिल, लंग्स, ब्रेन सहित दूसरे महत्वपूर्ण अंगों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं। डॉ. दादा ने कहा कि गठिया की रोकथाम के लिए योग करने से पहले मरीज को विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिए। उसी की देखरेख में योग करना चाहिए।

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