
बिहार विधानसभा चुनाव में NDA गठबंधन को ऐतिहासिक जीत मिली है. एक्सपर्ट से पॉलिटिक्स के उस नए फॉर्मूले को समझिए जिसमें जाति सहित सारे फैक्टर फेल हो रहे हैं, सीधे कैश मॉडल चुनावों की दिशा तय कर रहा है. बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को बंपर जीत मिलती दिख रही है. 243 विधानसभा सीटों वाले राज्य में ये गठबंधन 200 से ज्यादा सीटों पर लीड कर रहा है. वहीं विपक्ष की हालत खस्ता है. ऐसे में हर कोई ये जानना चाहता है कि वो क्या फैक्टर जिसने इस चुनाव में बीजेपी और एनडीए गठबंधन को ऐतिहासिक जीत दिला रही है. चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में 10 हजार कैश देने वाली स्कीम को बंपर फायदा मिला है और लोगों ने उसी वजह से बंपर वोटिंग की है
वरिष्ठ पत्रकार दिबांग का कहना है कि बिहार चुनाव के नतीजे इस बात के गवाह हैं कि अब चुनाव जाति से काफी ऊपर उठ चुका है. दिबांग कहते हैं, ‘यह जीत एक ऐतिहासिक बदलाव दिखा रही है. यह चुनाव ‘जाति बनाम 10 हजार कैश’ बन गया है. जिस तरह से पैसा ट्रांसफर हुआ, आशा कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी में काम करने वालों की सैलरी बढाई गई, चुनाव पूरी तरह उसी दिशा में मुड़ गया.’
आपको बता दें कि चुनावों से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ शुरू की. इसके तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सरकार की ओर से 10000 रुपये दिए गए. एबीपी न्यूज़ की ही रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना के तहत अब तक एक करोड़ से ज्यादा महिलाएं फायदा ले चुकी हैं. चुनावों में एनडीए को महिलाओं का भारी समर्थन मिला है. दिबांग कहते हैं बिहार पहला राज्य नहीं है जहां कैश की वजह से सरकार ऐसी जीत हासिक कर रही है. ये एक एक्सपेरिमेंट है जिसे शिवराज सिंह चौहान ने शुरू किया. आपको बता दें कि शिवराज सिंह चौहान ने 2023 में ‘लाडली बहना योजना’ शुरु की थी जिसके तहत 21 साल से 60 साल तक की महिलाओं को एक हजार रुपये मिलते हैं.
दिबांग का कहना है ‘महाराष्ट्र और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी ये एक्सपेरिमेंट सफल रहा, बिहार तो वैसे भी आर्थिक रूप से कमजोर राज्य है. ऐसे में यह बड़ा चुनाव बन गया, जिसमें बड़े उम्मीदवार की उतनी ज़रूरत नहीं रही, बल्कि एक मजबूत केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता थी और अमित शाह ने यह काम बखूबी किया.
उनका कहना है कि ये नई तरह की राजनीति है जिसमें विपक्ष के लिए बहुत कम मौके बचे हैं.
क्या जाति से ऊपर उठ चुका है चुनाव?
बिहार में जीत के आंकड़े ये बताते हैं कि विपक्ष अपने मुद्दों को जनता के बीच रखने में फ्लॉप रहा और सतारुढ पार्टी ने अपने काम को लोगों के बीच पहुंचाने में कामयबा रही. जाति फैक्टर भी फेल रहा. दिबांग का कनहा है कि ‘अब चुनाव पारंपरिक जातीय समीकरणों से काफी आगे बढ़ चुका है. अगर आप विपक्ष में हैं, तो बड़े–बड़े वादे कर सकते हैं- ‘हर घर नौकरी देंगे’, ‘इतनी स्कीमें लाएंगे’ – लेकिन लोग अब उसे सुनने वाले नहीं हैं, क्योंकि पैसा सीधे उनके हाथों में आ गया है.
चुनावों में ऐसा होना कुछ नया नहीं है. दक्षिण भारत की राजनीति में ऐसा बहुत पहले से होता आ रहा है. दिबांग बताते हैं कि ‘एक दौर ऐसा भी था, जब फ्रिज, प्रेशर कुकर, और यहां तक कि मंगलसूत्र तक बांटे जाते थे. अब वही दक्षिण की राजनीति यहां आ गई है.’
विपक्ष को अब ‘रेट’ बढ़ाना होगा
वो ये भी कहते हैं कि ‘दिलचस्प बात यह है कि अगर यहां 10 हजार दिए गए, तो अब ममता बनर्जी को 15 हजार देने होंगे. असम में मुख्यमंत्री को इससे भी अधिक देना होगा. और यह तभी संभव है जब आपके पास केंद्र की सरकार हो. अब से आने वाले समय में यही ‘फॉर्मूला’ राजनीति को चलाएगा.’
एबीपी न्यूज़ के रिपोर्टर बलराम पांडे ने आज नतीजों के बीच बिहार में महिलाओं से बातचीत की. एक महिला का कहना है कि ‘हमने सोचा कि अगर बिहार में तेजस्वी की सरकार बनी तो फिर से जंगलराज आ जाएगा, गुंडागर्दी होगी.’ वहीं, एक और महिला ने कहा कि ‘तेजस्वी की सपना चकनाचूर हो गया. फिर से नीतीश और आजीवन नीतीश.’



