धनखड़ के बाद राधाकृष्णन ही क्यों? NDA ने खेला तमिल दांव, I.N.D.I.A. की बढ़ेगी टेंशन

उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होने वाला है। इससे पहले एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन के रूप में अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। धनखड़ के बाद राधाकृष्णन ही क्यों, क्या एनडीए ने इससे विपक्ष की टेंशन बढ़ा दी है, जानें इस एक्सप्लेनर में….उपराष्ट्रपति का चुनाव नौ सितंबर को होने वाला है और इसके लिए उम्मीदवारों के नामांकन की आखिरी तारीख 21 अगस्त तक है। इस चुनाव के लिए सत्तासीन एनडीए (NDA) गठबंधन ने रविवार को अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है और वो नाम है महाराष्ट्र के राज्यपाल चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन। राधाकृष्णन तमिलनाडु के प्रभावशाली ओबीसी समुदाय से आते हैं और आरएसएस के समर्पित सदस्य और तमिलनाडु में अपनी अलग पहचान रखते हैं और प्रदेश के चर्चित भाजपा नेता रहे हैं।

रविवार की शाम के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संसदीय बोर्ड की बैठक और पार्टी के सहयोगी दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद राधाकृष्णन के नाम की घोषणा की। राधाकृष्णन के नाम की घोषणा के बाद विपक्षी इंडिया गठबंधन की टेंशन बढ़ गई है है क्योंकि अब तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों पर सबकी नजरें टिकी हैं।

बढ़ जाएगी इंडिया गठबंधन की टेंशन

राधाकृष्णन के नाम के ऐलान से इंडिया गठबंधन की टेंशन इसलिए बढ़ सकती है क्योंकि वे तमिलनाडु के प्रभावशाली ओबीसी समुदाय से आते हैं, जिसके वोट बैंक पर डीएमके की बड़ी पकड़ रही है और इंडिया गठबंधन के कई दल ओबीसी समर्थक रहे हैं। ऐसे में राधाकृष्णन का विरोध करना डीएमके समेत इंडिया अलायंस को भारी पड़ सकता है। दूसरा ये कि राधाकृष्णन की अपनी धाक है, जिसकी वजह से प्यार से उन्हें सीपीआर कहा जाता है। उनकी सार्वजनिक सेवा और जनता के प्रति समर्पण के लिए भी उन्हें पुरस्कृत किया गया है।

कब कब विपक्ष ने सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को दिया समर्थन

बता दें कि पिछले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में, क्षेत्रीय भावनाओं के आधार पर मतदान हुआ था, ऐसे में भाजपा को अब उम्मीद है कि राधाकृष्णन के मामले में भी ऐसा हो सकता है। इससे पहले कांग्रेस ने जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में प्रणब मुखर्जी को खड़ा किया था, तब लेफ्ट और टीएमसी ने उन्हें अपना समर्थन दिया था। इसी तरह, यूपीए ने जब प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को खड़ा किया था, तब शिवसेना ने उन्हें अपना समर्थन दिया था। इससे पहले, जब इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह को कांग्रेस का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, तब अकाली दल ने उनका समर्थन किया था। 

इससे पहले एनडीए ने जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में एपीजे अब्दुल कलाम के नाम की घोषणा की थी, तब सपा और कांग्रेस, दोनों ने उनका समर्थन किया था। राधाकृष्णन के मामले में भी ऐसी लगता  है कि डीएमके उन्हें समर्थन दे सकती है। 

जगदीप धनखड़ के बाद राधाकृष्णन ही क्यों

जगदीप धनखड़ के बाद एनडीए ने बड़ा दांव खेलते हुए राधाकृष्णन के रूप में इसलिए चुना है, जो बिल्कुल अलग है। सीपी राधाकृष्णन को धनखड़ की जाट-प्रधान, बाहरी पहचान के बजाय एक रणनीतिक और अखिल दक्षिण भारतीय, एक पूरी तरह से जनसंघ से उपजा हुआ व्यक्ति माना जाता है। राधाकृष्णन को सौम्य और कम बोलने वाले, सहनशील शख्स के रूप में देखा जाता है, जो  धनखड़ की मुखर आवेगशीलता से बिल्कुल अलग है।

एनडीए का जाट दांव, अब हो गया तमिल 

धनखड़ को 2022 में जाट विरोध प्रदर्शनों के बीच उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना गया था, तब जाट किसानों के लिए एक संकेत और यह संदेश देते हुए कि जाट राष्ट्रीय सत्ता संरचना का हिस्सा हैं और उनकी हमेशा सुनी जाती है। दूसरी तरफ राधाकृष्णन का चयन ओबीसी सोशल इंजीनियरिंग पर निरंतर निर्भरता और दक्षिण में भाजपा की विस्तार योजनाओं का संकेत देता है।  एक ऐसा क्षेत्र जहां, कर्नाटक को छोड़कर, पार्टी पैर जमाने में असमर्थ रही है।

राधाकृष्णन और धनखड़ के बीच अंतर

राधाकृष्णन ने डीएमके की तीखी आलोचना के खिलाफ केंद्र का समर्थन किया। उन्होंने उदयनिधि स्टालिन की सनातन धर्म संबंधी टिप्पणियों के खिलाफ भी आवाज उठाई और उन्हें बच्चा कहकर खारिज कर दिया, जबकि महाराष्ट्र में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई है। जिसमें विवादास्पद लोक सुरक्षा विधेयक पर विपक्ष द्वारा सहमति न देने की याचिका भी शामिल है। लेकिन उनके हस्तक्षेप उनके संस्थागत अनुभव और वैचारिक जुड़ाव पर केंद्रित थे, जबकि धनखड़ अपने हस्तक्षेप से विवादों में घिरे रहते थे।

राधाकृष्णन का स्वभाव संवैधानिक भूमिका के लिए बेहतर और अनुकूल रहा है, जिसकी वजह से भी उन्हें चुना गया, क्योंकि फिलहाल राज्यसभा को आक्रामकता की नहीं, बल्कि संतुलन की आवश्यकता है। राधाकृष्णन, धनखड़ की तुलना में भाजपा के वैचारिक संरक्षक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस के साथ अधिक मज़बूत वैचारिक जुड़ाव रखते हैं और इसी वजह से एनडीए ने उन्हें ही चुना है।

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