
महिला की हत्या मामले में निचली अदालत ने व्यक्ति को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। व्यक्ति ने 20 साल सजा के तौर पर जेल में भी काट लिए। अब पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने उसे निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया है।
24 साल पहले हुई हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए सोनीपत जिले के गांव समचना निवासी कृष्ण को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष याची को संदेह से परे अपराधी सिद्ध करने में असफल रहा है।
बाला नामक महिला का शव 19 अगस्त 2001 को सोनीपत के बख्तावरपुर गांव में एक पेड़ से लटका हुआ मिला था। शुरुआत में इसे आत्महत्या का मामला माना गया, लेकिन चार दिन बाद बाला के भाई बिजेंदर सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने कृष्ण और उसके परिवार के कुछ अन्य सदस्यों पर हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि बाला और कृष्ण के बीच कथित अवैध संबंधों के चलते यह हत्या की गई।
शिकायत के आधार पर 23 अगस्त 2001 को मुरथल पुलिस स्टेशन में हत्या का मामला दर्ज किया गया था। दिसंबर 2001 में कृष्ण को गिरफ्तार किया गया और केवल उसी को आरोपी बनाकर हत्या के आरोप में अदालत में पेश किया गया, जबकि अन्य के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को मजबूत करने के लिए एकबालिया बयान का सहारा लिया। कोर्ट को बताया गया कि कृष्ण ने फतेह सिंह नामक व्यक्ति के सामने हत्या की बात कबूल की थी। यह बात उसने राम सिंह की उपस्थिति में गांव समचना में एक रिश्तेदार के बैठक कक्ष में कही थी। यह बैठक उसी दिन हुई थी जिस दिन बाला का शव मिला था।
19 अप्रैल 2005 को निचली अदालत ने कृष्ण को दोषी मानते हुए उसे उम्रकैद और 5000 रुपये का जुर्माना की सजा सुनाई थी। कृष्ण ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था। ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं था जिससे यह साबित किया जा सके कि अपराध कृष्ण ने ही किया है। जिस व्यक्ति के सामने कथित जुर्म स्वीकार किया गया उस फतेह सिंह को अदालत में कभी पेश ही नहीं किया गया।
अभियोजन का दावा था कि फतेह सिंह को आरोपियों ने अपने साथ मिला लिया, लेकिन अदालत ने इस बात को खारिज करते हुए कहा कि उसकी गैर-हाजिरी से अभियोजन का पक्ष गंभीर रूप से कमजोर हुआ। हाईकोर्ट ने कहा कि अपना जुर्म स्वीकार करना कमजोर साक्ष्य होती है, जब तक उसे मजबूत और ठोस सबूतों से समर्थन नहीं मिलता, तब तक उस पर आधारित होकर दोष सिद्धि नहीं की जा सकती।