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सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों के मुफ्त के वादे करने पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगा क्योंकि उन्हें राशन और पैसे मुफ्त मिलते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की ओर मुफ्त सुविधाओं (Freebies) की घोषणा पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि लोग इनके चलते काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसा मिल रहा है। जस्टिस गवई ने कहा कि कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की यह टिप्पणी?
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज की बेंच ने यह टिप्पणी शहरी इलाकों में बेघर लोगो के शेल्टर से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बताया कि सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को फाइनल करने में लगी है जो गरीब शहरी बेघर लोगों को आवास उपलब्ध कराने से लेकर दूसरे जरूरी मसलों में मददगार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वो सरकार से निर्देश लेकर बताए कि ये कार्यक्रम कब से लागू होगा। 6 हफ्ते बाद कोर्ट आगे सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट पहले भी लगा चुकी है फटकार
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं। अधिक वोट्स पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है।