3 दल, 51 उम्मीदवार, MCD उपचुनाव में असली दांव पर नेताओं की इज्जत! BJP-AAP और कांग्रेस में कौन मारेगा बाजी?

Delhi MCD By Elections 2025: MCD उपचुनाव में मुकाबला 51 उम्मीदवारों का नहीं बल्कि BJP, AAP व कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की प्रतिष्ठा का माना जा रहा है. 12 वार्डों में से 9 BJP, 3 AAP के पास थी सीटें. MCD के 12 वार्डों के लिए 30 नवंबर को उपचुनाव हुए. जानकारों का मानना है कि इस चुनाव में BJP, AAP और कांग्रेस के 36 समेत 51 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला केवल प्रत्याशियों का नहीं बल्कि तीनों दलों के शीर्ष नेतृत्व की प्रतिष्ठा का है. इस चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे.

परिणाम यह बताएगा कि राजधानी में कौन-सी पार्टी का वर्तमान नेतृत्व जनता के बीच अधिक मजबूत पकड़ और भरोसा बनाए हुए है. इसलिए तीनों दलों ने उपचुनाव को आम चुनाव की तरह ट्रीट किया और पूरी ताकत झोंक दी, जिसमें खुद मुख्यमंत्री ने भी अपनी छवि और नेतृत्व की पहली बड़ी परीक्षा मानकर कोई ढील नहीं छोड़ी.

9 BJP और 3 AAP के पास थी सीटें

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता समेत 11 पार्षदों के विधायक बनने और कमलजीत सहरावत के पश्चिमी दिल्ली की सांसद बनने के बाद इन 12 वार्डों में उपचुनाव कराया गया. साल 2022 में इन वार्डों में से 9 पर बीजेपी और 3 पर AAP ने जीत हासिल की थी. बीजेपी और आप दोनों ने अपने पुराने वार्डों को वापस जीतने के लिए संबंधित विधायक और सांसद की पसंद के प्रत्याशी उतारे. ऐसे में यह उपचुनाव केवल संगठन की ताकत का नहीं बल्कि बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा, प्रभाव और चुनावी रणनीति को जमीन पर साबित करने की अग्निपरीक्षा माना जा रहा है.

आसान नहीं होगा ये मुकाबला!

दिलचस्प बात यह है कि तीनों प्रमुख दलों ने 36 उम्मीदवार मैदान में उतारे लेकिन इनमें एक भी कद्दावर नेता शामिल नहीं है. फिर भी प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा के लिए चुनौती कम नहीं है क्योंकि उनकी अगुवाई में पार्टी को 12 में से 9 पुराने वार्ड दोबारा जीतने हैं और यह उपचुनाव केंद्र में बीजेपी सरकार के कामकाज पर जनता का पहला सीधा मूल्यांकन भी माना जा रहा है. दूसरी तरफ AAP के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज डबल प्रेशर में देखे गए क्योंकि उन्हें न सिर्फ तीनों वार्ड वापस जीतने की जिम्मेदारी उठानी है बल्कि अपने गृह क्षेत्र ग्रेटर कैलाश में बीजेपी को रोकना उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है. कांग्रेस पिछली बार की तुलना में इस बार कहीं अधिक सक्रिय दिख रही है और उसने हर वार्ड में प्रत्याशियों को स्थानीय मुद्दों व मोहल्ला स्तर की नाराजगी पर फोकस करने की रणनीति दी है. अमर उजाला के अनुसार, पार्टी नेतृत्व का मानना है कि स्थानीय समस्याओं की सही पहचान और घर-घर पकड़ पुराने वोटरों की वापसी करा सकती है. इस तरह उपचुनाव नतीजे केवल जीत-हार से आगे बढ़कर यह भी बताएंगे कि राजधानी की राजनीति में किस पार्टी का नेतृत्व वास्तव में जनविश्वास को संभाल पाने की क्षमता रखता है. कुल मिलाकर इन उपचुनावों का परिणाम तीनों दलों के बड़े नेताओं के प्रभाव, रणनीति और जनता में स्वीकार्यता का सबसे सटीक आइना साबित होगा.


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