बुंदेलखंड रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में मध्य प्रदेश में करीब 24 हजार करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जिससे 27 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। हालांकि, कॉन्क्लेव के बाद जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बुंदेलखंड को इससे ज्यादा फायदा नहीं मिला है। कॉन्क्लेव में 24 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं, इनमें बुंदेलखंड के हिस्से में महज 9,411 करोड़ रुपये के प्रस्ताव ही आए हैं। बाकी प्रस्ताव प्रदेश के मालवांचल, महाकौशल, और चंबल क्षेत्र में निवेश के लिए हैं।
जहां निवेश, वहां रोजगार
कॉनक्लेव में आए निवेश के आधार पर दावा किया जा रहा है कि इससे 27 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। हालांकि, निवेश के प्रस्ताव अन्य इलाकों के लिए भी मिले हैं, ऐसे में उन क्षेत्रों के लोगों को भी रोजगार मिलेगा। इस कारण बुंदेलखंड के हिस्से में करीब 10 हजार लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है, जबकि बाकी 17 हजार नौकरियां उपरोक्त क्षेत्रों में बंट जाएंगी।
स्थानीय कुटीर उद्योग रहे निवेश से वंचित
करीब चार घंटे के कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उनके मंत्रिमंडल के साथियों ने बीड़ी उद्योग पर बात नहीं की। सार्वजनिक रूप से इस कारोबार को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, जबकि लोगों को उम्मीद थी कि सीएम बीड़ी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र की जीएसटी को छोड़कर अन्य रियायतों और नीतियों का इस मंच से ऐलान करेंगे। इसी तरह सिल्वर पार्क का मसौदा भी केवल घोषणा तक ही सीमित रहा। वरिष्ठ विधायक शैलेंद्र के कहने पर सीएम डॉ. यादव ने कहा कि इस कारोबार के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी, लेकिन सुविधाएं क्या होंगी, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।
जिले को थी ये उम्मीदें
सागर की पहचान एक समय चांदी उद्योग के रूप में थी। फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में चनौआ में टमाटर, चितौरा में मिर्ची, जैसीनगर की हल्दी और शाहगढ़ में देसी घी के उत्पादन की इकाइयां स्थापित किए जाने की पर्याप्त संभावनाएं हैं। यदि यह प्रयास किए जाते तो सागर फूड प्रोसेसिंग और उत्पादन का हब बन सकता था। इसी प्रकार, शाहगढ़ और हीरापुर क्षेत्र में खनिज उत्पादन इकाइयां स्थापित किए जाने की भी बेहतर संभावनाएं हैं। यहां रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, जिप्सम, सोप स्टोन और आयरन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। शाहगढ़ का खनिज पूरे देश में विख्यात है, एक समय शाहगढ़ के काले पत्थर की विदेश में ‘काले सोने’ के रूप में पहचान थी।