बीजेपी नेता द्वारा ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ के खिलाफ दायर याचिका के जवाब में कांग्रेस की ओर से भी एक याचिका दायर की गई है. कांग्रेस ने गुरुवार (16 जनवरी) को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. इस याचिका में यह कानून बचाने के लिए कई तर्क दिए गए हैं. इनमें एक तर्क यह भी है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए यह कानून जरूरी है.
कांग्रेस ने अपनी याचिका में कहा है, इस मामले में हस्तक्षेप कर वह प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के संवैधानिक और सामाजिक महत्व पर जोर देना चाहती है, क्योंकि उसे आशंका है कि इसमें कोई भी बदलाव भारत के सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरे में डाल सकता है, जिससे राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पहुंच सकता है. वह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध है. जब कांग्रेस पार्टी और जनता दल लोकसभा में बहुमत में थे तब यह कानून बनाया गया था ताकि देश की धर्मनिरपेक्षता और अखंडता कायम रहे. देश में सभी समुदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्दपूर्ण संबंधों के लिए पूजा स्थल कानून जरूरी है.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
साल 1991 में केंद्र की कांग्रेस सरकार यह कानून लाई थी. इसके तहत भारत की आजादी यानी 15 अगस्त 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था या है, वह उसी रूप में रहेगा. उसे नहीं बदला जा सकेगा. हालांकि, अध्योया मामले को इस कानून से बाहर रखा गया था क्योंकि इस मामले के बाद ही इस कानून को लाया गया था.
कानून के खिलाफ लगाई गई थी याचिका
बीते दिनों बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस कानून के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. अश्विनी कुमार का तर्क है कि यह कानून हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों को अपने पूजास्थलों और तीर्थस्थलों पर अपना अधिकार वापस लेने से रोकता है. बता दें कि इस मामले में पहले से ही कई याचिकाएं अदालत में दाखिल की गई हैं. इन सभी पर अगले महीने 17 फरवरी को सुनवाई होगी.