भजन सरकार ने शहरी सरकारों के ढांचे में बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे आगामी नगर निकाय चुनावों पर असर पड़ सकता है. राजस्थान में भजन लाल शर्मा की सरकार ने अब तक कई अहम फैसले लिए हैं, जिनमें पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार की योजनाओं के नाम बदलने और नए जिलों तथा संभागों के गठन का विरोध शामिल है. अब भजन सरकार ने शहरी सरकारों के ढांचे में बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे आगामी नगर निकाय चुनावों पर असर पड़ सकता है.
राज्य सरकार ने शहरी निकायों की सीमा और वार्डों की संख्या में बदलाव करने के लिए एक मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन किया है. इस समिति का नेतृत्व नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा करेंगे, जबकि वन मंत्री संजय शर्मा, सहकारिता मंत्री गौतम कुमार दक और जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत इसके सदस्य होंगे. यह समिति 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए शहरी निकायों के पुनर्गठन की समीक्षा करेगी. उस समय जयपुर, जोधपुर और कोटा जैसे बड़े शहरों में नगर निगमों की संख्या बढ़ाकर दो कर दी गई थी और वार्डों की सीमा का परिसीमन भी किया गया था. भाजपा ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए किया गया कदम बताया था.
परिसीमन प्रक्रिया को फिर से जांचने का फैसला
अब भाजपा की सरकार ने इस परिसीमन प्रक्रिया को फिर से जांचने का फैसला लिया है. इसमें खास ध्यान अल्पसंख्यक बाहुल्य वार्डों पर होगा, जिन पर कांग्रेस सरकार के दौरान आरोप लगाया गया था कि इन्हें जानबूझकर तोड़ा गया था ताकि कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा मिल सके. माना जा रहा है कि अब जयपुर, कोटा और जोधपुर में फिर से एक-एक नगर निगम बनेगा और वार्डों की संख्या कम की जाएगी. इस बदलाव के साथ एक बड़ी चुनौती चुनाव समय पर कराना होगी. इस साल दो सौ नब्बे नगर निकायों के चुनाव होने हैं, लेकिन वार्डों के परिसीमन में देरी हो सकती है. अगर उप समिति अपनी रिपोर्ट समय पर नहीं देती तो चुनावों में विलंब हो सकता है. नगरीय विकास विभाग पहले ही परिसीमन प्रक्रिया की समय सीमा दो बार बढ़ा चुका है, और अब अंतिम तारीख़ 21 मार्च है, लेकिन अभी तक समिति की कोई बैठक नहीं हुई है. ऐसे में चुनावों में और देरी हो सकती है.