दुनिया का वह सबसे बड़ा दर्द… जानिए क्यों रो पड़े शांति का नोबेल पाने वाले लोग.

इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार (Nobel Peace Prize 2024) मिला है जापान के उस संगठन को, जो दुनियाभर को परमाणु हथियारों के खतरे के बारे में बता रहा है, ताकि उनको उस दर्द से न गुजरना पड़े, जिसे जापान अब तक झेल रहा है.

मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा हो सकता है… शांति के नोबेल के बाद तोशियुकी मिमाकी की आंखों में आंसू थे. दरअसल यह उस दर्द से निकले थे, जिसको दुनिया ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान देखा और जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों ने जिंदगी भर झेला. शुक्रवार शाम को शांति के नोबेल का ऐलान किया गया. इस बार यह जापान में 1945 के परमाणु बम विस्फोटों का दर्द झेल और बांट रहे संगठन को दिया गया. दुनिया को हिला देने वाले इस परमाणु हमले में बचे लोगों ने मिलकर 1956 में एक संगठन निहोन बनाया था, जो दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों के बारे में बता रहा है . शुक्रवार को जब शांति के नोबेल का ऐलान हुआ, तो संगठन के लोगों की आंखों में आंसू थे. वे भावुक थे. संगठन के सह-अध्यक्ष तोशियुकी मिमाकी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में रो पड़े थे. 

क्यो रो पड़े निहोन हिदानक्यो संगठन के लोग?

6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था. इसमें करीब 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे. तीन दिन बाद दूसरा धमाका नागासाकी में हुआ और 74 हजार लोगों की जानें चली गईं. इतिहास में परमाणु बम दो बार दागे गए, लेकिन इसने दुनिया को हिलाकर रख दिया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए इन भयावह हमलों में बचे हुए लोगों को जापान में ‘हिबाकुशा’  के नाम से जाना जाता है. इन लोगों कि जान तो बची, लेकिन रेडिएशन ने उन्हें जिंदगी भर का दर्द दिया. परमाणु बम ने उन्हें लंबी बीमारी और कैंसर जैसे जख्म दे दिए.

क्या करता है जापान का निहोन हिदानक्यो?

दुनिया फिर ऐसे दर्द से न गुजरे, इसके लिए जापान में 1956 में ‘निहोन हिदानक्यो’ संगठन बना. इस संगठन के लोगों का काम था ‘हिबाकुशा’ की कहानियां बताना और दुनिया को यह समझाना कि परमाणु हथियारों के साथ पूरी मानवता कितने खतरे में हैं. 

मिमाकी ने संगठन को शांति का नोबेल मिलने के बाद कहा, ‘यह दलील दी जाती है कि परमाणु हथियारों के कारण ही दुनिया में शांति है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि इसका इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं .’ उन्होंने कहा कि  उदाहरण के लिए यदि रूस यूक्रेन के खिलाफ या इजराइल गाजा के खिलाफ उनका उपयोग करता है, तो यह यहीं खत्म नहीं होगा. राजनेताओं को ये बातें पता होनी चाहिए. मिमाकी ने अपने संगठन के बारे में कहा कि उनके समूह जिसकी स्थापना 1956 में हुई थी, के सदस्यों की औसत उम्र  85 साल थी. 

 

मिमाकी ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि परमाणु बम हमलों में बचे लोगों की दूसरी पीढ़ी और आम लोग शांति के लिए काम करेगी.’  हिरोशिमा के मेयर कजुमी मात्सुई  परमाणु हथियारों की तुलना दैत्य से करते हैं. उन्होंने भरे दिल से कहा, ‘हिबाकुशा तेजी से बूढ़े हो रहे हैं. अब ऐसे बहुत कम लोग ही बचे हैं जिन्होंने परमाणु बम के जख्मों का दर्द झेला है और जो परमाणु बम के खतरों के बारे में दुनिया को बता सकें.’
 

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